उत्तर प्रदेशभारत

मोहम्मद हसन की कयादत में 6 महीने तक आज़ाद रहा गोरखपुर

Mohd Hasan
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भारत की पहली जंगे आजादी के क्रांतिकारी मोहम्मद हसन नगर के मोहल्ला काज़ी से ताल्लुक रखते है. उनके वंशज घर में आज भी रहते है. मोहम्मद हसन के भाई मीर फिदा हुसैन अवध स्टेट के नाज़िम रहे. इनके द्वारा विधानसभा के गेट नंबर आठ पर एक मस्जिद तामीर कराई, जिसे आज भी गवर्नर वाली मस्जिद के नाम से जाना जाता है.


  • रिपोर्टः आसिम अली, बदायूं

सहसवान (बदायूं)। भारत की पहली जंगे आजादी में हर कौम के जानिसारों ने बढ़कर हिस्सा लिया। उन्हीं में एक नाम है मोहम्मद हसन…। वह अपनेे समय के सबसे  प्रतिष्ठित देशभक्त थे। इतिहास के पन्ने बताते हैं कि पहली जंगे आजदी की बगावत मई 1857 के आखिरी हफ्तें में शुरू हुई। जून 1857 नरहरपुर के राजा हरिसिंह ने इस अभियान में सम्मिलित होने की घोषणा कर दी।

आजादी की पहली लड़ाई की गोरखपुर में कयादात (नेतृत्व) मोहम्मद हसन जैसी महान क्रांतिकारी के हाथों में आयी। बता दे मोहम्मद हसन सहसवान के मोहल्ला काज़ी के रहने वाले थे जिनके परिजन आज भी मोहल्ला काज़ी में रहते है मोहम्मद हसन के पोते मीर मुशर्रफ अली ने बताया कि क्रांतिकारी मोहम्मद हसन व उनके भाई मीर फिदा हुसैन मेरे पूर्वज (दादा) है मोहम्मद हसन और मीर फ़िदा हुसैन की निशानिया आज भी उन्होंने सजोये रखी है.


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मीर फिदा हुसैन अवध स्टेट के गवर्नर रहे और इनके द्वारा लखनऊ मर विधानसभा के गेट नंबर आठ पर मस्जिद तामीर करवाई जिसको आज  गवर्नर हाउस वाली मस्जिद के नाम से जानी जाती है मीर विदा हुसैन प्रथम स्वंतत्रता सग्राम 1857 के सेनानी रहे मीर मोहम्मद हसन व मीर फिदा हुसैन के बंशज मीर मुशर्रफ अली ने बताया, ‘जिस मकान में हम रहते है. अंग्रेजो ने मीर मोहम्मद हसन के घर के दरवाजे को तोपो से उड़ा दिया था. घर मे मोहम्मद हसन ने दीवान खाना बनवाया था. मोहम्मद हसन की कयादत में छह माह तक गोरखपुर को अंग्रेज़ो के पंजे से आजाद रहा.

अली ने बताया, “अवध की बेगम हजरत महल ने मोहम्मद हसन को गोरखपुर का नाजिम नियुक्त किया। इससे पूर्व वह गोण्डा और बहराईच के नाजिम की जिम्मेदारी उठा चुके थें। लेकिन वहां से हटने के बाद उन्होंने गोरखपुर पर अधिकार कर लिया और अंग्रेजी शासन को गोरखपुर से उखाड़ फेंका। उसी शक्ति के कारण अधिकांश क्षत्रीय राजाओं ने उसी अधीनता स्वीकार कर ली। मोहम्मद हसन ने गोरखपुर नगर में कुछ माह शासन किया लेकिन जनवरी 1858 आते-आते गोरखपुर नगर पर अंग्रेजों का दबाव बढ़ने लगा। मोहम्मद हसन का जितने भी दिन शासन रहा। वह लाजवाब रहा, लेकिन शासन व्यवस्था ज्यादा दिन नहीं टिक सकी।”


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अंग्रेजों ने गोरखा एवं सिख सैनिकों पर चढ़ाई कर दी। गोरखा सैनिकों को नेतृत्व राणा जंग बहादुर कर रहे थे। 26 दिसम्बर 1857 को जंग बहादुर कमिश्नर सैमुअल के साथ आगे बढ़ा। क्रांतिकारी मोर्चें में ग्राम सोहनापुर के कुंवर सिंह के चचेरे भाई हरिकृष्ण सिंह, पैना के ठाकुर सिंह राजा सतासी डुमरी बाबू बन्धू सिंह, गहमर के मेधर सिंह ने मोहम्मद हसन के नेतृत्व में ग्राम सोहनापुर के आस-पास मोर्चा बंद की। नायब नाजिम मोशर्रफ खां और पटना के मौलवी अब्दुल करीम अपने क्रांतिकारियों सहयोगियों का नेतृत्व कर रहे थे। अंग्रेजों के साथ सिख और गोरखा सैनिकों का उन्हें पता नहीं था। युद्ध दस बजे से डेढ़ बजे तक चला। क्रांतिकारी जंग हार गये।

एक सौ बीस स्वदेश प्रेमी वीर गति का प्राप्त हुए। नायब नाजिम सतासी मोशर्रफ खां भी पूरब की ओर चले गये। नायब नाजिम मोहम्मद हसन अज्ञात स्थान में छुप गए। अंग्रेजों का जनवरी 1858 में पुनः गोरखपुर पर अधिकार हो गया। नयाब नाजिम सतासी मोशर्रफ खां पकड़े गए उन्हें फाँसी पर लटका दिया गया।  16 जनवरी 1858 तक अंग्रेजों का गोरखपुर पर पूर्ण अधिकार हो गया। इसके बाद मोहम्मद हसन फैजाबाद की ओर चले गये।  अंग्रेज़ो द्वारा पुनः गोरखपुर पर अधिकार करने के बाद अंग्रेजों ने गोरखपुर कमिश्नरी में परिवर्तित कर दिया और उसकी देखभाल के लिए चाल्र्स विंग फील्ड को नियुक्त किया गया।

 

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