उत्तर प्रदेशमुजफ्फरनगर

“हम मर जाएंगे… सरकार की लिस्ट से नाम हट जाएगा”, क्यों टूट रही है दशकों से टूटे घर और झोपड़ियों में रह रहे परिवारों की उम्मीद?

behra assa
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मुजफ्फरनगर के जानसठ ब्लॉक के गांव बेहडा अस्सा में कई परिवार करीब डेढ दशक से टूटे घर और झोपडियों में रहने को मजबूर है. शहरी इलाके में भी इसहाक जैसे कई लोग टूटी कड़ियों के मकान में रह रहे हैं. ये परिवार कई बार प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घर बनवाने के लिए सरकार से अर्जी लगा चुके हैं. मगर आज तक इन्हें पात्र ही नहीं माना गया है. महंगाई के दौर में मुफलिसी की मार और टूटती हिम्मत के बाद भी इन लोगों को उम्मीद की एक किरण जरूर नजर आ रही है कि एक दिन सरकार इनकी चौखट तक जरूर पहुंचेगी और इनको आशियाना बनाकर देंगी. द एक्स इंडिया की ये खास रिपोर्ट पढ़िए….


  • अमित सैनी, प्रधान संपादक

यूपी. सरकारें बदली… निज़ाम बदलें… और हुक्मरान भी बदले… मगर उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में रहने वाले कालू… सतीश… कमलेश और मोहम्मद इसहाक जैसे सैंकड़ों लोगों की तकदीर आज भी नहीं बदली.

टूटी कड़ियों वाली छत… फूंस-पुआल की काली पन्नी वाली झोपड़ी और बरसात में टप-टप टपकता पानी… ये ही है इन लोगों का जिदंगी का कड़वा सच… जिसे देखकर भी जंग खाई सरकारी मशीनरी अनजान बनी हुई है…

हालांकि नारकीय जीवन बिता रहे इन लोगों की आस अभी टूटी नहीं है… इन्हें उम्मीद है कि कभी ना कभी सरकार इन पर ध्यान देंगी और इन्हें एक घर मुहैया कराएंगे.

 

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सतीश कश्यप अपनी दो बेटियों और बेटे के साथ                                                                                                                 फोटोः द एक्स इंडिया

कमर टूट गई, मगर उम्मीद बाकी

ये शख्स जानसठ ब्लॉक के अंतर्गत आने वाले बेहड़ा अस्सा गांव निवासी सतीश कश्यप है. पिछले दिनों घर गिरने के बाद परिवार के सिर से छत छिन गई. फिलहाल जिस कोठे नुमा घर में रह रहा है, वो उसके भाई का है.

वो इसमें पशुओं के लिए भूसा रखता था. भाई के सिर से छत चली गई तो उसने रहने के लिए उधार दे दिया. लेकिन इस मकान की छत भी पूरी तरह से टूटी-फूटी है. आलम ये है कि ये कभी भी गिर सकता है.

सतीश कश्यप कहते हैं,

“वो अब तक कई बार प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण के तहत मकान बनवाने के लिए सरकार से अर्जी लगा चुका है. लेकिन उसका आज तक घर नहीं बन सका है.”


 

 

“हम मर जाएंगे, लिस्ट से नाम कट जाएगा”

सतीश कश्यप निराश होकर कहते है, “अगर सरकार उनकी सुन ले और उनका घर बनवा दे तो वो सरकार का बहुत आभारी रहेगा.“

सतीश कहते हैं, “भले ही उनका मकान कई अर्जियां देने के बाद भी ना बन सका हो, लेकिन अभी भी उसे उम्मीद है कि सरकार एक दिन उसका मकान घर बनवाएंगी.”

हालांकि लगातार हो रही बारिश में मकान गिर जाने की आशंका के सवाल पर वो कहते हैं,

“अगर मकान गिर गया तो हम मर जाएंगे और सरकार की लिस्ट से नाम कट जाएगा.”

 

बीवी का निधन, खुद है बीमार

मुफलिसी के दौर से गुजर रहे सतीश कश्यप की बीवी का काफी दिन पहले निधन हो चुका है. जिसके बाद वो अकेला ही मेहनत-मजदूरी करके परिवार का भरण-पोषण करता है. जब बीवी जिंदा थी तो दोनों साथ मिलकर मजदूरी किया करते थे.

बीवी की मौत के बाद सतीश अकेला पड़ गया और बड़े होते बच्चों के भरण-पोषण की जिम्मेदारी भी बड़ी होती चली गई. अब आलम ये है कि मेहनत-मजदूरी करते-करते सतीश की हिम्मत जवाब देने लगी है और अब वो बीमार रहने लगा है.

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सतीश कश्यप अपने परिवार के साथ अब इस टूटे-फूटे मकान में रहता है                                                                                                      फोटोः द एक्स इंडिया

बड़ी बेटी बनी सहारा, खिला रही रोटी

चूल्हा फूंककर रोटी बनाने वाली ये लड़की सतीश की बड़ी बेटी है. अब रोटी का एक ये ही सहारा परिवार में है. घर में गैस सिलेंडर नहीं है. हो भी कैसे? महंगाई की मार ने अच्छे-अच्छों के पसीने छूड़ाए हुए है. सतीश तो फिर भी मुफिलिसी के भीषण दौर से गुजर रहा है.

गैस सिलेंडर ना होने की वजह से बड़ी बेटी को ही सुबह-दोपहर और शाम को चूल्हा झौंकना पड़ता है. वो कहती है, “गर्मी हो या सर्दी, या हो फिर बरसात… हमे तो चूल्हा ही फूंकना पड़ता है.“

सतीश की बेटी बताती है कि बारिश में सबसे ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. वो बताती है, “जब तक बारिश नहीं रूक जाती, तब तक हमारे घर में चूल्हा नहीं फूंकता और ना ही रोटी बन पाती है.

वो बताती है, “हम बारिश रूकने का इंतजार करते हैं. जब बारिश रूक जाती है, हमारे घर में तब ही रोटी बनती है. वरना तब तक हमे भूखा ही रहना पड़ता है.“

 

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चूल्हे पर रोटी बनाती सतीश कश्यप की बडी बेटी                                                                                                                                फोटोः द एक्स इंडिया

वो कहती हैं, “कभी-कभी ऐसा भी होता है कि बारिश कुछ देर के लिए रूक गई. उसी वक्त मैं चूल्हा फूंकने लगती हूं. इससे पहले कि आग पूरी तरह से जल उठे, उससे पहले ही बारिश फिर से शुरू हो जाती है और चूल्हा फिर से ठंडा हो जाता है.“

सतीश, उनकी बेटियां और मासूम सा बेटा चाहते हैं कि उनका घर बन जाए. ताकि वो लोग भी अपने घर के अंदर चैन की नींद सो सके. वो कहते हैं, “हमारे पास घर बनाने के लिए पैसे नहीं है. अगर होते तो हम अब तक सरकार के भरोसे ना बैठे रहते.“

 

बड़ा है मां का दर्द

हाथ रख रखकर रोटी खाने वाली ये महिला कोई और नहीं, बल्कि सतीश की मां कमलेश है. पांच बेटों में सतीश दूसरे नंबर का है. खेतीबाड़ी के लिए कोई कृषि भूमि नहीं है. जिसकी वजह से सभी अलग-अलग रहकर मेहनत मजदूरी करते हैं.

जिस झोपड़ी में कमलेश कश्यप बैठी है… वो हिस्सा कमलेश के हिस्से में आता है. लेकिन जमीन के टुकड़े पर मकान बनवाने के लिए उसके पास पैसे नहीं है. वो पिछले 15 साल से सरकार से आस लगाए बैठी है.

कमलेश कहती है, “उसने कई बार फॉर्म भरवाया. लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. हमने इस बार भी फार्म भरा है.”

 

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अपनी टूटी-फूटी झोपडी में बैठी कमलेश                                                                                                                                                         फोटोः द एक्स इंडिया

 

वो कहती है, “आप खुद देख सकते हो मेरी झोपड़ी पूरी तरह से टूट चुकी है. पन्नी फट गई है. फूंस भी गल गया है. बारिश होती है तो सारा पानी ऊपर आता है.“

कमलेश बताती है, “बारिश में उसका खाने का सारा सामान भीग कर खराब हो गया. कपड़ों में भी पानी भर गया. अभी तक भी गीले हैं.“

कमलेश चाहती है कि “उसके जिस बेटे के पास घर नहीं है, उसके साथ उसे भी सरकार घर बनवाकर दे दें.”

 

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कालूराम कश्यप की वो झोपडी, जिसमें वो पूरे परिवार के साथ करीब 12 साल से रह रहा है                                                                                                      फोटोः द एक्स इंडिया

 

“आते हैं, जांचते हैं और चले जाते हैं”

आंखों में आस… और उम्मीद की किरण लिएये शख्स भी बेहड़ा अस्सा गांव का ही रहने वाला है. ये कमलेश और सतीश का पड़ोसी कालूराम कश्यप है. बच्चों समेत कालूराम कश्यप पिछले 10-12 साल से इसी झोंपड़ी में अपना जीवन बसर कर रहे हैं.

कालूराम बताते हैं, “पहले यहां पर उनका एक छोटा सा घर हुआ करता था. लेकिन उसके टूटने के बाद उसका परिवार पूरी तरह से सड़क पर आ गया. जिसके बाद उसने झोंपड़ी बनाई और परिवार समेत उसमें रहने लगा.”

वो कहते हैं, “उसे परिवार के साथ इस झोपड़ी में रहते हुए 12 से 15 साल हो चुके हैं. बीच-बीच में झोपड़ी टूट भी जाती है तो वो फिर से मरम्मत करके उसे ठीक कर लेता है.“

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कालूराम कश्यप अपनी पीडा बताते हुए                                                                                                                                                                   फोटोः द एक्स इंडिया

 

कालू कहते हैं, “उसमें इतनी सामर्थ्य नहीं थी कि वो घर दोबारा बनवा सके. तब से अब तक वो कई मर्तबा प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत ऑनलाइन अर्जी लगा चुका है.”

वो कहते हैं कि “हर बार सचिव से लेकर लेखपाल तक सर्वे करके चले जाते हैं, लेकिन रिजल्ट सिफर ही रहता है. हालांकि इनकी आस अभी टूटी नहीं है. अगर सरकार उनका घर बनवा दे तो वो उनके आभारी रहेंगे.”

 

दोबारा से सर्वे, मिलेगा हर गरीब को घर

बेहड़ा अस्सा गांव के प्रधान मनोज उर्फ सोनू पूर्व फौजी है. वो कहते हैं, “पहले के सर्वे के मुताबिक कुछ लोगों को प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना के तहत कुछ लोगों को आवास मिले थे. लेकिन बहुत सारे पात्र वंचित भी रह गए थे.“

सोनू प्रधान कहते हैं, “फिर से सर्वे का कार्य चल रहा है. उम्मीद है कि इस बार पात्रों को आशियाना जरूर मिल जाएगा.”

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प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण के दोबारा से होने वाले सर्वे की जानकारी देते ग्राम प्रधान मनोज उर्फ सोनू फौजी                                                 फोटोः द एक्स इंडिया

खौफ के साए में जीने को मजबूर

अब आप इस तस्वीर को भी जरा गौर से देखिए… टूटी कड़ियों और फट्टियों की छत वाला ये घर किसी गांव-देहात का नहीं है… बल्कि मुजफ्फरनगर शहर के नगर पालिका के अंतर्गत आने वाले सरवट मोहल्ले के वार्ड नंबर-38 में स्थित है.

ये घर इसहाक पुत्र अख्तर का है. बारिश के मौसम में इसहाक का पूरा परिवार खौफ के साए में रात बिताता है. आस पास होने वाले हादसों की वजह से परिवार खौफजदा है कि पता नहीं कब उनका मकान भी धराशायी हो जाए.

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शहरी क्षेत्र में जर्जर हाल इसहाक का घर फोटोः                                                                                                          द एक्स इंडिया

इसहाक के पड़ोसी सदाकत आलम बताते हैं, “कई बार फार्म भरने के बाद भी आज तक कोई रेस्पोंस नहीं मिला है. हम चाहते है कि सरकार इस तरफ ध्यान दें और इनका घर जल्दी से बनवा दे दें.“

सदाकत आलम ये भी आरोप लगाते कहते हैं, “आस-पडोस में कई ऐसे लोगों के घर-मकान प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत बनवा दिए गए हैं, जिनकी आर्थिक हालत इसहाक से कही बेहतर थी. लेकिन उन्हें पता नहीं किन मानकों के आधार पर पात्र मानते हुए उनके घर बना दिए गए है. और जिसका सबसे पहले बनना चाहिए था, उसका आज तक भी नहीं बना.“

 

क्या कहते हैं अधिकारी?

आधुनिक भारत की ऐसी बदनुमा तस्वीरों के सामने आने के बाद सरकारी तंत्र के पास कोई जवाब नहीं होता. हालांकि अपर जिलाधिकारी प्रशासन नरेंद्र बहादुर सिंह कहते हैं, “प्रधानमंत्री आवास योजना शहरी के अंतर्गत काफी लोगों के घर बनाए जा चुके हैं. फिर से पात्र लोगों के आवेदन मांगे गए हैं. प्राप्त आवेदनों की जांच के बाद पात्रों के घर बनवाएं जाएंगे.

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मुजफ्फरनगर के अपर जिलाधिकारी प्रशासन नरेंद्र बहादुर सिंह                                                                                                                                                  फोटोः द एक्स इंडिया

 

बहरहाल… सरकार भले ही लाख दावे कर लें कि करोड़ों लोगों को घर मिल चुके हैं, लेकिन ये हकीकत भी नहीं झुठलाई जा सकती कि आज भी बहुत से ऐसे लोग हैं, जिन्हें प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ नहीं मिला है और वो वाकई में सही मायने में इस योजना के असली हकदार भी है.

अब देखने वाली बात बस ये होगी कि सरकार इन बेघरों की चौखट तक कब पहुंचती है और कब तक इनके सिर पर एक अदद छत मुहैया होती है?

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